४०० ॥ श्री चौंसर शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि सूरति शब्द पै दो बनि दीन दास ह्वै जावोगे।
तब पदवी श्रेष्ट मिलै भक्तों काया के बीर कहावोगे।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि होय सिय राम सामने छावोगे।
सुर मुनि सब आय करैं सेवा बाजा सुनि अमृत पावोगे।
नागिन जागै षट चक्र चलैं सातौं फिर कमल खिलावोगे।
तन त्यागि चलो साकेत डटौ फिर बंधन में नहिं आवोगे।६।
शेर:-
मीठे बचन पुकारना। किसी को मत तुकारना।
नेकी से सब को मारना। किसी को मत बिगारना।
पर नारि मत निहारना। उस से न हो उबारना।
हरि नाम पर बिचारना। नाहीं तो हो उद्धारना।
सतगुरु बचन न टारना। यह बैन उर में धारना।५।