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४०४ ॥ श्री श्वांसा शाह जी ॥


पद:-

भक्तौं श्वांसा सार कहावै।

तन से श्वांस बिलग जस होती मुरदा कहि गोहरावैं।

धोय पोंछि कफ़नाय के सब मिलि टिकठी बांधि उठावैं।

मरघट जाय उठाय धरैं तहँ बैठि जाय सुस्थावैं।

कोई गाड़ै कोइ अगिनि देत हैं कोइ जल मांहि बहावै।५।

लौटि आंय फिर निज निज गृह के कारज में लगि जावैं।

इस श्वांसा में राम नाम है सतगुरु करि जो ध्यावै।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छावै।

सुर मुनि मिलैं पियै घट अमृत अनहद सुनि हर्षावै।

नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलावैं।१०।

तुरिया तीत दशा है मानो मुद मंगल कहवावै।

श्वांसा शाह कहैं तन तजि कै चट साकेत सिधावै।१२।


शेर:-

स्वामी रामानन्द जी के संख की धुनि जिन सुनी।१।

जिस हेतु आयो जौन कोई उस हेतु में बनिगो धनी।२।

कहैं श्वांसा साह मैं तो शिष्य प्रभु का जस भनी।३।

जिनकी कृपा की थाह नहिं अस्तुति करत नित सुर मुनी।४।