४०५ ॥ श्री दंगे शाह जी ॥ (२)
पद:-
मुरशिद करो पावो पता मक्का मदीना पास है।
धुनि ध्यान लय औ रूप सन्मुख क्या अजब परकास है।
अस्सी पैगम्बर संग रहैं कर गहि कहैं दुख नास है।
सुर मुनि मिलैं उर में लगें बोलैं तू सच्चा दास है।
अनहद सुनो अमृत पिओ जो झरत बारह मास है।५।
नागिन जगै चक्कर चलैं कमलन क होत बिकास है।
तन त्यागि निज पुर को चलो जहं होत भक्तन बास है।
दंगे कहैं सुमिरन करो जब तक ये तन में सांस है।८।