४०७ ॥ श्री सुफल शाह जी ॥
पद:-
लै कर सतगुरु से उपदेश जियतै काया सुफ़ल बनालो।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छालो।
नागिन जगै चक्र सब बेधैं सातों कमल खिलालो।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि संग बतलालो।
सहज समाधि यही है मानो बिधि हरि हर समता लो।५।
अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन निजपुर बैठ क जा लो।
चेति पूछि औ घोषि बनै यह अपने हृदय बसालो।
सुफल शाह कहैं जो नहिं मानो चौरासी चकरालो।८।
दोहा:-
सहज समाधि अखण्ड है, होय न कबहूँ खण्ड।
सुफल शाह कह जान लो, फूटै भर्म क भंड॥