४०८ ॥ श्री रियाज़त शाह जी ॥
कुधान्य खाय भक्त लूटे जाते।१।
रज तम से यह धान्य है सानी जम पुर कूटे जाते।२।
जब बढ़िया कहीं भोजन देखैं लारी घूंटे जाते।३।
जिन के तन मन राम रमे हैं वै सब छूटे जाते।४।
पद:-
गींज गांज की बातें कहि सुनि तन अमोल को नाश किया।
मातु पिता की गई जवानी , बिरथा जग में जन्म लिया।
पाप कमाई कीन अघाई बांधि लीन दोनों गठिया।
अन्त समै जम बांधि के लै गे छोड़ि नर्क में डारि दिया।
हर दम कष्ट एक पल कल नहिं गरिआवैं कहि कहि नठिया।५।
जब नीचे से ऊपर आवै सिर पर लोहे कि दें लठिया।
हाय हाय वहँ पर चिल्लावैं कौन सुनै उनकी बतिया।
कोटिन कल्प वहां पर भोगैं सुमिरन बिन भइ यह गतिया।
कहैं रियाज़ शाह सतगुरु करि चेतो उलटि जाय मतिया।
तब तो सब दिसि वही वही है जब घर की मिलि गइ घटिया।१०।