४१३ ॥ श्री रामेश्वर जी ॥
दोहा:-
लालच बुरी बलाय है जग से जान न देय।१।
आसक्ती वाकी कठिन, राति दिवस सुधि लेय।२।
सतगुरु कृपा से जाय बचि, यही है एक उपाय।३।
राम नाम सुमिरन करै, प्रेम भाव उर लाय।४।
पद:-
है भजन एक बिरती अनेक सब खोपड़ी खोपड़ी में ढारी।१।
करिके बिचार बनना अचार, यह लीला हरि की है भारी।२।
है भजन एक अनुभव अनेक सब जानत नहिं नर तन धारी।३।
या में बिचार करना बेकार, यह लीला हरि की है भारी।४।