४१२ ॥ श्री शिव शंकर जी ॥
पद:-
हरि नाम में प्रेम नहीं जिनका।
माया कसि लूटत है तिनका।
बटपार कहैं किनका किनका।
कर फेरि कहैं इनका इनका।
अब गर्भ कि याद करो दिनका।
जिन गर्भ में प्यार किह्यो उनका।
फिर बाहर आय भयो झिनका।
माता निति सेय किहि सिहिनका।
तब नारि निहारि बन्यो भिनका।
सब भागि बिचारि गयो घिनका।
ससुरारि पियारि वही पिनका।
तन त्यागि के चलि जमपुर भिनका।१२।