४१६ ॥ श्री बिशाल शाह जी ॥
हृदय बिशाल से भजन होत कर नैन जीभ नहिं काम करै।
सतगुरु से जप भेद जानि ले सूरति शब्द पै तौन धरै।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख सीता राम ठरै।
सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद अमृत पी पी उदर भरै।
जियति शरन सोई कहलावै जो आलस तजि जियति मरै।५।
जियति मरन सोई है जानो जो करतल करि जियति तरै।
कहैं बिशाल शाह यह बानी समझ बूझ कै धैर्य धरै।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजै गर्भ बास का दु:ख टरै।८।