४२१ ॥ श्री संतर शाह जी ॥
पद:-
सब कुछ राम नाम के अन्तर।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो है अमोल यह जंतर।
ध्यान प्रकाश समाधि रूप औ सरे तंतर मंतर।
विधि हरि हर सुर मुनि सब जान्यौ चारौं मोक्ष कि संतर।
या को पाय जीव हो निर्मल लगै न कोई तंतर।
जो नहि मानो बिनय हमारी बिनिहौं कांटे कंकर।६।
दोहा:-
राम जानकी कृष्ण राधिका बिष्णु लक्ष्मी रा में।
औ विश्व सब म मं देखा फिर समान हैं रा में॥