४३२ ॥ श्री गर्जन शाह जी ॥
पद:-
सुमिरन का लिखा गरभ पट्टा।
जग में आय भूल कर बैठा लगि गया कुल में बट्टा।
सतगुरु से जप भेद जान लो चलो मगन ह्वै सुख अट्टा।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने में सट्टा।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि लाय देंय गट्टा।५।
मुख में धरत देर नहिं लागै गल जावैं आपै चट्टा।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलैं फट्टा।
जो या बिधि ते भजन करै तो कठिन कुअंक मानहुकट्टा।८।