४३३ ॥ श्री पागल शाह जी ॥
पद:-
नाम रूप बिन जाने भक्तों चेला कभी बनाना ना।
पढ़ि सुनि गुनि कै चेत करो निज कुल में दाग लगाना ना।
आँखी कान खुलैं नहिं गुरु बिन मिलिहै कहीं ठिकाना ना।
जल भोजन का चेत रहै नित रज तम अन्न को खाना ना।
प्रेम भाव से सुमिरन करना मन के कहै पै जाना ना।५।
यह पाजी ऐसा है काजी गहि रखिना दौराना ना।
कछु दिन बाद होय यह राजी साधन में अलसाना ना।
पागल शाह कहैं चुप रहना सब को भेद बताना ना।८।
दोहा:-
गुरू गुरू सब जन कहैं गुरू मिलब बड़ काम।१।
अंधकार को नाश कर,दे प्रकाश का धाम।२।
सतगुरु सतगुरु सब कहैं, सतगुरु मिलना काम।३।
जा के आँखी कान हो, वा को सतगुरु नाम।४।