४३५ ॥ श्री छबीले शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि नाम नहिं चीन्है सब जक्त में झूठै भक्त कहैं।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि नहीं सिया राम भला तोहिं कैसे चहैं।
अनहद न सुने, अमृत न पिये, सुर मुनि उर में फिर कैसे गहैं।
नागिन न जगी, नहिं चक्र सुधे, नहिं कमल खिले खुशबू को लहैं।
तन छोड़ि गये साकेत नहीं, फिर बार बार रौ रौ में ढहैं।
यह मानि बिनय जो ले मेरी, सो आदि अन्त का सुक्ख लहैं।६।