४३६ ॥ श्री छैल शाह जी ॥
पद:-
साधक सुमिरन उर में राखैं। सतगुरु करैं खुलैं श्रुति आंखैं।२।
हरि जस कहैं कुशब्द न भाखैं। सुनैं गुनैं तन मन नहिं माखैं।४।
कर्म उठाय धरैं सब ताखैं। फूलि फलैं अनुभव की साखैं।६।
अनहद सुनै अमी रस चाखैं। अन्त त्यागि तन जग नहिं कांखैं।८।