४३८ ॥ श्री रज़ा शाह जी ॥
पद:-
भजन में लौ लगी जिसकी वही जानै मज़ा क्या है।
ध्यान धुनि तेज लय करतल रूप सन्मुख सजा क्या है।
देव मुनि आय नित भेटैं कहैं बोलो गिज़ा क्या है।
नहीं कछु कह सकै प्यारा प्रेम रंग में भिजा क्या है।
छोड़ि तन निज वतन पहुँचा तो अब भक्तों कज़ा क्या है।
रूप रंग हो गया हरि का अजब ढंग से सजा क्या है।६।