४३७ ॥ श्री खिलाड़ी शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि सुमिरन सिखौ छोड़ि जग मक्कर।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि में जावो भक्कर।
सन्मुख में श्यामा श्याम लखौ नित हंसि कर।
सुर मुनि सब लायके दिब्य खिलावैं शक्कर।
फिर मन्दाकिनी का नीर पिलावैं छक कर।५।
सातौं फिर जागैं कमल छइउ जो चक्कर।
नागिनी मातु जगि जाय करै को टक्कर।
तन त्यागि चलौ निज धाम न आओ भग कर।८।