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४४२ ॥ श्री हुरदंगी माई ॥

पद:-

बांधौ राम नाम का हीरा।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जारो भव की पीरा।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि सन्मुख सिय रघुबीरा।

सुर मुनि आय के रोज़ देंय तब खोया खांड़ समीरा।

अमृत पिओ सुनो घट अनहद बाजै ड्योढ़ी तीरा।५।

 

नागिन जगै चक्र सब बेधैं कमल खिलैं सब तीरा।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो बनि के हरि सुत बीरा।

हुरदंगी कह जियति न जानै तेहि जम करैं खमीरा।८।