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४४३ ॥ श्री पचरंगी शाह जी ॥


पद:-

करौ मेरे हृदय बासा, श्री मानस श्री गीता।

नहीं अब और कोई आसा, श्री मानस श्री गीता।

नाम का बज रहा तासा, होत है ध्यान परकासा।

समाधी सब करम नासा, रूप सन्मुख रहै खासा।

मिट गई भूख औ प्यासा,सीत औ उष्ण से पासा।

अजर औ अमर नहिं नासा,भयो अनमोल तन श्वांसा।६।

॥ श्री मानस श्री गीता।


दोहा:-

पांच प्राण मिलि एक भे, पंच गब्य भइ जान।

तब अशुद्ध ते शुद्ध हो, सुर मुनि कवी बखान॥