४४४ ॥ श्री शाह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि आंखी कान लेहु, तब जानो को जग कैस अहै।
जियतै में सब करतल करिये, नहिं कोई रहा नहिं कोई रहै।
विश्वास में तन मन को भरिये, सब जांय उलटि भीतर की तहैं।
जो नैन सैन से बैन गुनै, सो काहे जक्त में फेरि बहै।
हरि प्रेम भाव की मूरित हैं, हम सत्य बचन कर जोरि कहैं।
सुर मुनि सब जै जै कार करैं तन त्यागि अचल पुर सुःख लहैं।६।