४४७ ॥ श्री बावू शाह जी ॥
पद:-
है लालच की लफ़री सफ़री सब सुकृति खात नित छोरि छोरि।
जग में बनि दीन रहौ या से नाहीं रहि जहियो कोरि कोरि।
घर घऱ में फेरी देत रहत करती है परिक्षा फोरि फोरि।
क्या कटा छटा याकी बांकी गावत है तानें तोरि तोरि।
सुर मुनि सब या से भय खाते लखि मातु कहैं कर जोरि जोरि।५।
जो या के संग में भंग भये मल का रंग छिड़के घोरि घोरि।
नैनों से लखौ नहिं बोलि सकौ तन मन को मारयौ बोरि बोरि।
या से गुरु करि हरि सुमिरौ बातैं मत करना ढोरि ढोरि।८।