४४८ ॥ श्री फाके मस्त शाह जी ॥
पद:-
जपि हरि नाम चुकावो बाकी।
बाकी गर्भ का तन मन ढांकी, चलिहै ऊपर जमन की टांकी।
तब तन कोंचैं रुधिर निकारैं, फिरि जावै चट पाकी।
यह बाकी बिधि हरि हर सुर मुनि चुकै अमीरस छाकी।
ध्यान प्रकाश दशा लय पायो कर्मन की गति आंकी।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि की सन्मुख रहै झाँकी।
नागिन जगी चक्र सब घूमे खिलि गई कमलन फाँकी।
सतगुरु से जप भेद जान के खेलो नाम की हाकी।
माया चोर होंय सब काबू कौन सकै तब ताकी।
अन्त त्यागि तन निज पुर राजौ जै जै पितु मां की।१०।