४५० ॥ श्री मंगल शाह जी ॥
पद:-
वेद शास्त्र उपनिषद संहिता औ पुरान बतलाते हैं।
रामायन मानस औ गीता वशिष्ठ योग समुझाते हैं।
पर्व अठारह महार्भात के वे भी यही सिखाते हैं।
चारों युग बिधि हरि हर सुर मुनि राम नाम रटि लाते हैं।
सब लोकन में इसी की चरचा हर शै से सुनि पाते हैं।५।
तब काहे फिर वाक्य ज्ञान कथि ठगते फिरत ठगाते हैं।
जो कोइ आवै नाम बतावै पढ़ि सुनि बृथा छिपाते हैं।
है अनमोल दाम नहिं लागे,तारें औ तरि जाते हैं।
कलि में और उपाय न दूजा बार बार हम गाते हैं।
प्रेम भाव से सुमिरैं जे जन, ते फिर गर्भ न आते हैं।१०।
मंगल शाह कहैं मुद मंगल सब में प्रभू दिखाते हैं।
मेरी तरह जीव सब होवें हर दम यही मनाते हैं।१२।