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४५८ ॥ श्री बलुवा पासी जी ॥

राम नाम सुमिरौ कहैं बलुवा। सुर मुनि आय पवावैं हलुवा।

सन्मुख राजैं जसुदा तलुवा। जो सारी सृष्टि करै पलुवा।

तन मन से सतगुरु चरन छुआ सुर मुनि चट आयके दीन दुआ।

सब मिलि तब दीन्ह्यौ माल पुआ पायन अदभुत सुख तुरत हुआ।

धुनि ध्यान प्रकाश समाधि कुआ जहँ सुधि बुधि आय के होत मुआ।

सुमिरन बिन नर तन आन थुआ जम कूटैं सब तन होय घुआ।६।


दोहा:-

कढ़िलावत लै कर चलैं हाय हाय चिल्लाव।

बलुवा कह हरि भजन बिन चलै न एकौ दांव।