४५९ ॥ श्री ख़ज़ाना शाह जी ॥
चौपाई:-
पंडित संत भये अभिमानी। तब जानौ हैं वाक्य के ज्ञानी।
पढ़ि सुनि लिखि कर ताना तानी। अन्त नर्क में हो हैरानी॥
तन मन जब तक होय न पानी। तब तक मिलैं न हरि सुखदानी॥
सुर मुनि सब की है यह बानी। गुरु बिन मिलै न पद निर्वानी।४।
पद:-
सतगुरु करि मन को नाम पै दो धरि लेव ख़ज़ाना गेरि गेरि।
तप धन सम कोई धन न और यह सुर मुनि कहते टेरि टेरि।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो छूटै तब मैं तैं मेरि तेरि।
अमृत चाखौ घट साज सुनौ सुर मुनि सब बैठें घेरि घेरि।
नागिन सब चक्कर कमल खिलैं क्या महक उड़ाते फेरि फेरि।५।
सन्मुख में राधे श्याम रहैं, निरखौ हंसि हर दम हेरि हेरि।
जम काल मृत्यु औ पांच चोर, माया बनि जावे चेरि चेरि।
तन छोड़ि चलौ निज धाम डटौ तब गर्भ न आवो फेरि फेरि।८।