साईट में खोजें

४६५ ॥ श्री पं. पलक निधि तिवारी ॥

पद:-

सतगुरु करो हर दम लखो सन्मुख में अदभुत है झलक।

महिजा कहौ चहे भूमिजा रघुबंश मणि रघुकूल तिलक।

बन्द होवैं नैन रसना, कर न हिलने दो हलक।

ध्यान धुनि परकाश लय में जाव मिलि मरतै पलक।

कह पलक निधि तन छोड़ि निज पुर बास लो छूटै गलक।

सुमिरन बिना अनमोल तन दोनो तरफ़ होवै तलक।६।