॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(२)
राम भजन हित मानस गीता।
सब सुर मुनि जा को नित ध्यावत है अति परम पुनीता।
प्रेम से पाठ करेंगे जे जन जियतै भव दुख जीता।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि उनको देंय सुभीता।
चार पदारथ दोउ माता दें ह्वै जावै मन मीता।
अन्धे शाह कहैं उठि चेतो सोवत बहु दिन बीता।६।
दोहा:-
पढ़ै सुनै औ लेय गुन दीन बनै गहि शान्ति।
अन्धे कहैं उस जीव की छूटि जाय सब भ्रान्ति।
जा के तन मन भाव है सो पावै कछु जान।
अन्धे शाह कहैं सुखी खुलि जांय आँखी कान।
प्रेम प्रभु का रूप है, प्रेमहि सब का सार।
अन्धे शाह कहैं सुनौ मुक्ति भक्ति का तार।६।
चौपाई:-
मन काबू कीन्हे बिन भाई। पाठ जाप का फल किमि पाई।१।
खाक पछोरत सूप मँगाई। आँखिन परै देह खिसकाई।२।
शान्ति दीनता पकड़ै धाई। मन आपै तब करै मिताई।३।
अन्धे शाह कहैं गोहराई। नाम की गति है अति सुखदाई।४।
दोहा:-
कथा कीर्तन पाठ जप पूजन सेवा धर्म।१।
बिना प्रेम के होंय नहिं जग में जितने कर्म।२।
अन्धे शाह कहैं गुनौ छूट जात सब भर्म।३।
बिना भाव के किसी को मिलत न या को मर्म।४।