॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
पद:-
सुर मुनि जुग वेद पुकार यही भजि लेहु रकार मकार सही।
निर्गुण निराकार अविकार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब में सब से न्यार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
है अकथ अलेख अपार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
है अगम अथाह बल दार यही भजु लेहु रकार मकार सही।५।
सर्गुण सब का आधार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब मंत्रों का पतवार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब पाप करत है क्षार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सर्वत्र ते हो झुकार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
बिधि लेख को मेटन हार यही भजु लेहु रकार मकार सही।१०।
अन्मोल अमर ज़रदार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
लय ध्यान तेज औतार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
नागिनी जगावन हार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब चक्र कमल सुधवार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
उत्पति पालन संहार यही भजु लेहु रकार मकार सही।१५।
सिया राम दरश का तार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
साकेत में देत बिठार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब जोगन में सरदार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
बिन प्रेम के है दुशवार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सोहं रंकार ओंकार यही भजु लेहु रकार मकार सही।२०।
गुनिये प्राणन ते प्यार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सब सुखों का है सार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
सतगुरु करि लेहु सुतार यही भजु लेहु रकार मकार सही।
अंधे कहैं निज कुल कार यही भजु लेहु रकार मकार सही।२४।
दोहा:-
परस्वारथ में काम दें बहु जीवन के चाम।
अंधे कह बेकार है सुमिरन बिन नर चाम॥
दोहा:-
अपने तन से किसी को देय न कबहूँ कष्ट।
अंधे कह सतगुरु बचन सो नहिं होवै भृष्ट॥
चौबौला:-
सो नहिं होवै भृष्ट शांति हों तन के तच्छक।१।
सन्मुख सीता राम हमेशा रहते रच्छक।२।
माया जम गण काल मृत्यु हारे जो भच्छक।३।
अंधे कहैं सुनाय भजन बिन कोई न रच्छक।४।
चौपाई:-
हरि सुमिरन के बहुत हैं रस्ता। एक को साधो सब हों सस्ता।१।
सुर मुनि नित्य पवावैं खस्ता। हर दम राम सिया लखि हंसता।२।
जियतै खोलि के देखो बस्ता। यह तन ना जाने कब नस्ता।३।
सतगुरु जा को देवैं मसता। अंधे कहैं कटै जग गस्ता।४।
पद:-
वाक्य ज्ञान है प्राण बिहीन। अमल करै सो हो परबीन।२।
राम नाम में मन रमि जाय। अंधे कहैं सो निज पुर जाय।४।
पद:-
अंतह करन भयो नहिं ठीक। पढ़ ना सुनना लिखना फीक
निकसि गई जब कपट की हीक। अंधे कहै दोऊ दिसि नीक
पद:-
जै सरस्वती शारदा माई।
सर्व गुणन की आप हौ आगर, सुर मुनि वेदन गाई।२।
मम मन हरि सुमिरन में लागै यह आशिष दीजै हर्षाई।३।
अंधे शाह कि अर्ज यही है बार बार चरनन शिर नाई।४।
पद:- सतगुरु करि हरि को भजो लखौ हरि बोलैं।
जारी........