॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
जो सतगुरु करि चेत प्रेत सब भये किनारे।
अंधे कहैं सुनाय देव मुनि हैं रखवारे।१०।
नाम तान परकास दसा लै कर्मन टारे।
सन्मुख सीता राम भक्त हर वक्त निहारे।१२।
दोहा:-
तिकड़म को मन छोड़ि कै राम नाम में लागु।
अंधे कह सिकरम चढ़ो नित्य धाम को भागु।१।
नित्य धाम को भागु जागु जियतै में प्यारे।
अंधेकहैं सुनाय जाँय सतगुरु रखवारे।२।
तहँ पर सन्त अनन्त रूप रंग हरि का ढारे।
राम सिया का अमित तेज सुख सांति सदारे।३।
पद:-
चोरन संग चौपट कीन हमैं। मन आती दाया नहीं तुम्हैं।२।
अंधे कहैं नाम पै कौन जमै। सतगुरु बिन मन केहि भाँति थमै।४।
दोहा:-
मन को जो पकड़ा चहै सांति दीन बनि जाय।
अंधे कह तब यह सही पग साधै गो आय।१।
चौपाई:-
ठग किरचिल औ चोर जुवारी। इनसे भक्तौं गंगा हारी।१।
इनको साधक जो पतियावै। सो तन तजि जम पुर को जावै।२।
बार बार चौरासी नाचै। जब तक हरि रंग में नहिं रांचैं।३।
अंधे शाह कहैं हर्षाई। राम नाम श्रुति सार कहाई।४।
पद:-
जानौ नाम कि कार रवाई।
सतगुरु से सब भेद सीख लो तब भक्तौं फरियाई।
ध्यान प्रकास समाधी होवै र रंकार भन्नाई।
सिया राम की झाँकी सन्मुख हर दम निरखौ छाई।
सारे चोर भागि जाँय तन से रोवैं निज मुख बाई।
अँधे कहैं अन्त श्री अवध में बैठो चलि अस्थाई।६।
पद:-
मन तुम चहौ तो हम हों जोगी।१।
सतगुरु से सुमिरन बिधि लेकर सदा ब्रह्म सुख भोगी।२।
अंधे कहैं अन्त निज पुर हो होय न कबहूँ रोगी।३।
यह पद सुनै पढ़ैं औ मानै सच्चे लांवा पोंगी।४।
दोहा:-
खुरपेंची मन देव तजि भजौ राम का नाम।
अंधे कह तब हो मगन अंत मिलै निज धाम।१।
पद:-
मन को मारि चलो निज धामे।१।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाने सारे सु:ख तुम्हारे सामे।२।
पढ़ि सुनि लिखि कै अमल करै जो वाके जियति होंय सब का।३।
अंधे शाह कहैं सो प्राणी बार बार जग में नहिं भामे।४।
पद:-
मन भजिये सीता राम को। हम पावैं अपने धाम को।१।
अंधे कहैं ऐसे नाम को। सब सुर मुनि ध्यावत काम को।२।
धनि धनि धनि नर औ बाम को। जे सुनत लखत बसुजाम को।३।
जै जै जै मानुष चाम को। जिन पायो अचल मुकाम को।४।
पद:-
मन से नौ गृह गये रिसाय। हरि सुमिरन सुनि चलत पराय।१।
या से जीव पड़ा बिल्लाय। अंधे कहैं न चलत उपाय।२।
सतगुरु मिलै सबै दुख जाय। तारै तरै दीनता आय।३।
जियति तजै सब मान बड़ाय। शरनि मरन औ तरनि को पाय।४।
शेर:-
दुसरों की बुराई में भलाई हो नहीं सकती।
कहैं अंधे दुश्मनी हो रिहाई हो नहीं सकती।१।
जारी........