॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥
जारी........
राम नाम सुमिरौ नर नारी।
सतगुरु से सब भेद जानि कै चोरन लेहु संभारी।
युग औ लोक वेद हैं जपते सुर मुनि सक्ती झारी।
लै परकास धुनी हो हर दम शै से रंकारी।
सब से बिलग मिली है सब में सब से लघु औ भारी।५।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सब के पितु महतारी।
सन्मुख रहैं न अन्तर होवैं मन्द हंसनि अति प्यारी।
छबि सिंगार छटा की शोभा है मुद मंगल कारी।
जियतै में जो तै करि लेवै सो बिधि लेख को टारी।
अंधे कहैं अन्त साकेत में चलि बैठे चुप मारी।१०।
पाप करम करते फिरत कहत बड़ी है मौज।
अंधे कह तन छोड़ि कै पड़ै नर्क के हौज।१॥
औरेन को हैं देत चुनौती पकड़ौ हमैं तुम्है जानी।१।
हम को झूठै पाप लगावत बोलि रह्यौ अनुचित बानी।२।
ऐसी बातैं करत अधरमी उनकी मन मति बौरानी।३।
अंधे कहैं अन्त जम पीटैं जाय नर्क में दें सानी।४।
खिल्ली करते और की आप पाप के रूप।
अंधे कह तन त्यागि कै जाय परैं भव कूप।१।
चोरी करि लै आवते औरेन की जो चीज।
अंधे कह चलि नर्क में रोवैं दोउ कर मींज।२।
डाकू बनि के डाका मारैं। बहु जीवन के प्राण निकारैं।२।
अबलन की आबरु बिगाड़ैं। रोकैं जे तब उन्हैं पछारैं।४।
पाप करम में कभी न हारैं। नेकौ दया नहीं उर धारैं।६।
अन्त त्यागि तन नर्क सिधारैं। अन्धे कह तब कौन उजारैं।८।
अहेला खेलती माया कहैं अन्धे घर मग बन में।
करो सतगुरु भजन जानो न लागै दाग तप धन में।१।
करो सतगुरु भजौ हरि को मुस्तकिल जियति हो जग में।
कहैं अंधे तजौ तन जब तो चलि साकेत सुख पावो।२।
पद:-
मगन वै भक्त हर दम हैं जे साधन कर लिया पहले।
जानि मारग को सतगुरु से चोर सब कस लिया पहले।
सुना अनहद मधुर घट में अमी रस चख लिया पहले।
देव मुनि संग हरि चरचा सुनी आशिष लिया पहले।
जगी नागिनि चले चक्कर कमल सब तै किया पहले।५।
नाम धुनि तेज लै जाकर करम दोउ हत किया पहले।
रूप षट सामने रहते प्रेम में बस किया पहले।
कहैं अंधे जियत ही में वतन निज लख लिया पहले।८।
दोहा:-
करुई कटिया सेरि औ क्वंडरा खेलौ नाम।
अंधे कह सतगुरु करौ चोर सकौ तब थाम।१।
दोहा:-
सतगुरु करौ मारग मिलै उस पर कदम तो रक्खौ।१।
अंधे कहैं देखौ सुनौ अनुपम अमी को चक्खौ।२।
दोहा:-
किसी के खुलते श्रवन हैं किसी के खुलते नैन।
नैन श्रवन खुलि जाँय जब अंधे कह तब चैन।१।
दोहा:-
किसी के खुलते श्रवन हैं किसी के खुलते नैन।
नैन श्रवन खुलि जाँय जब अँधे कह तब चैन।१।
जारी........