१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७)
पद:-
अहँकार है नर्क क द्वारा। ता में लागे कपट केंवारा॥
ताके संग में क्रोध कसाई। काम चमार बड़ा दुखदाई॥
धोबी लोभ संग में घूमै। मोह दुष्ट हर दम मुख चूमै॥
चिंता कर में लिहे है फाँसी। दौरि दौरि जीवन ले गाँसी।४।
माया पटकि बैठि जाय सीने। कहै भजन प्रभु का नहि कीन्हे॥
कलपन यम पुर में दुख पावो। कौन सहायक तँह बतलावो॥
आलस नींद कि यह सब सामा। बिरलै बचत कोई नर बामा।
सतगुरु करि हरि नाम क ध्यावो। अंधे कहैं गरभ नहि आवो।८।