१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८)
पद:-
बिरलै सफ़ा मिलत कोइ मन का।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै सो सब चोरन हन का।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से हो झनका।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख निसि औ दिन का।
सुर मुनि मिलैं शीश कर फेरै पाटे गर्भ के रिन का।
अंधे कहैं अंत निजपुर हो फेरि न जग में सनका।६।