१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१०)
पद:-
बिना हरि के सुमिरे गिरे जा रहे हैं।
उधर को है जाना किधर जा रहे हैं।
जे आलस में माते बिगर जा रहे हैं।
यहाँ अच्छी अच्छी ग़िज़ा खा रहे हैं।
नरक की ग़िज़ा देखि चिल्ला रहे हैं।५।
बिना जाने औरों को समुझा रहे हैं।
नरक में तड़फ़ते औ मुँह बा रहे हैं।
यहाँ हँसते गाते औ हर्षा रहे हैं।
नरक एक पल की न कल पा रहे हैं।
यहाँ पाप करते औ अठिला रहे हैं।१०।
गहे जम नरक को लिहे जा रहे हैं।
जे सतगुरु से जप बिधि लिये ध्या रहे हैं।
बचन पै गये तुलि मजा पा रहे हैं।
धुनी नाम परकास लै धा रहे हैं।
सिया राम सन्मुख में छबि छा रहे हैं।१५।
लिखा बिधि का जियतै में कटवा रहे हैं।
मुनी देव मिलने को नित आ रहे हैं।
पकड़ि दोनों कर उर में लिपटा रहे हैं।
जगी नागिनी चक्र घुमरा रहे हैं।
कमल सब खिले कैसे गमका रहे हैं।२०।
सभी लोक देखैं औ बतला रहे हैं।
खटा खट सुनैं तार जो आ रहे हैं।
यह है मार्ग सूरति शबद गा रहे हैं।
कहैं अंधे तन तजि अवध जा रहे हैं।२४।