१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९)
पद:-
जदा कदा सुमिरत नर नारी ऐसा सुमिरन ठीक नहीं।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै चोर सकत तब छीक नही।
नाम रूप परकास समाधी बिना मिटत बिधि लीक नहीं।
अंधे कहैं अन्त साकेत में जाय महा सुख कीक नहीं।४।
पद:-
जदा कदा सुमिरत नर नारी ऐसा सुमिरन ठीक नहीं।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानै चोर सकत तब छीक नही।
नाम रूप परकास समाधी बिना मिटत बिधि लीक नहीं।
अंधे कहैं अन्त साकेत में जाय महा सुख कीक नहीं।४।