१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१२)
पद:-
बल बुद्धी आयू हरै पाप महा है दुष्ट।
तन पीड़ा ताकत हरै कैसौ होवै पुष्ट।
नर नारिन को दुख हरै भक्ति ज्ञान की गुष्टि।
अंधे कह हरि भजन बिन अन्त में जम हों रुष्ट।४।
पद:-
बल बुद्धी आयू हरै पाप महा है दुष्ट।
तन पीड़ा ताकत हरै कैसौ होवै पुष्ट।
नर नारिन को दुख हरै भक्ति ज्ञान की गुष्टि।
अंधे कह हरि भजन बिन अन्त में जम हों रुष्ट।४।