१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२१)
पद:-
अंधे कहैं कातौ कातौ सतगुरु करि नाम को कातौ।
मातौ मातौ मातौ तन मन से प्रेम में मातौ।
सातौ सातौ सातौ दिन बृथा में बीतत सातौ।
गातौ गातौ गातौ अनमोल श्वाँस नर गातौ।४।
शेर:-
चकल्लस हो रही घट में बिना अनुभव न कोई जानै।
कहे अंधे करे सतगुरु भजे हरि को सोई जानै॥