१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२२)
पद:-
कथा औ कीर्तन पूजन पाठ सुमिरन कहीं होता।
कहीं पर यज्ञ भँडारा कहीं सेवा कहीं न्योता।
कहीं पर रहस औ नाटक कहीं ठेठर सनेमा है।
कहीं नौटंकी रामायण कहीं गीता क नेमा है।
कहीं गाना बजाना है कहीं व्याख्यान ठाना है।५।
कहीं कुस्ती औ कसरत है कहीं बहु अस्त्र सिखलाते।
कहीं सुर मुनि की बैठक में जाँय जो जिसके मन भाते।
कहीं मूरति की पूजा है मंदिर अस्तुति से गूँजा है।
कहीं तीरथ करने जाते कहीं पर लौटे आते हैं।
कहीं पीते न खाते हैं समाधी ही में माते हैं।१०।
कहीं औतार सब दर्शैं शीश पर आय कर परसैं।
कहीं सरिता उजागर हैं कहीं तालाब सागर हैं।
कहीं पर बाग फुलवारी कहीं पर कूप सुखकारी।
कहीं काली घटा छाई कहीं दामिन दमक आई।
कहीं पर ताल तलियाँ हैं कहीं बापी व गलियाँ हैं।१५।
कहीं पक्के बने पोखरा कहीं सुन्दर भवन दोहरा।
कहीं नाले बिना पानी कहीं पर बह रहा पानी।
कहीं पच्छिन का गाना है सुनो कैसा सुहाना है।
कहीं बादल गरजते हैं कहीं पर खुब बरषते हैं।
कहीं जादू के मंतर हैं कहीं टोना व जंतर हैं।२०।
कहीं बातों का लटका है कहीं दारू का चुटका है।
कहीं तटका उतारा है कहीं नोटिस प्रचारा है।
कहीं सरकस को करते हैं कहीं बहु रूप धरते हैं।
कहीं अस्तुति को करते हैं कहीं निन्दा पसरते हैं।
कहीं मारैं औ फटकारैं कहीं रोते को चुपकारैं।२५।
कहीं माँगै लगा बेहरी भरे रुप्यों से कसि केहरी।
कहाँ तक को करै बरनन जो घट में कार जारी है।
देखतै बन पड़ै भक्तौं यह जलसा बहुत भारी है।२८।