१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३४)
पद:-
बिन ब्याही मरती हैं हौसन ब्याही मन ललचाती हैं।
गौने की मौने ह्वै बैठीं थौने की मुसक्याती हैं।
कबीर दास जी की यह बानी सतगुरु करि जे पाती हैं।
तिन ही को मुद मंगल दोउ दिसि गर्भ न चक्कर खाती हैं।४।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने छाती हैं।
अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि संग बतलाती हैं।
नागिनि जगै चक्र षट डोलैं सातों कमल खिलाती हैं।
अंधे कहैं दया की मूरति दीनन को सिखलाती हैं।८।