१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४४)
पद:-
जीव ब्रह्म माया का खेल। जानो सतगुरु से करि मेल।
मन को मारि के होहु अकेल। सारे चोर होंय तब फेल।
खोलि केवारी घर में पेल। नाम खजाना लेहु सकेल।
कर्म शुभाशुभ जावैं बेल। अन्धे कहैं ब्रह्म से मेल।४।
पद:-
जीव ब्रह्म माया का खेल। जानो सतगुरु से करि मेल।
मन को मारि के होहु अकेल। सारे चोर होंय तब फेल।
खोलि केवारी घर में पेल। नाम खजाना लेहु सकेल।
कर्म शुभाशुभ जावैं बेल। अन्धे कहैं ब्रह्म से मेल।४।