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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४५)


पद:-

सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै सीतापुर सो जाइ सकै।

ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने छाइ सकै।

अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि संग बतलाइ सकै।

नागिनि जगै चक्र षट नाचैं सातौं कमल खिलाइ सकै।

शान्ति दीनता प्रेम से भक्तों दीनन लखि बरताय सकै।

अंधे कहैं त्यागि तन जक्त में फेरि न चक्कर खाइ सकै।६।