१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४९)
पद:-
सतगुरु करो मारग मिलै तुम ख्याल पर माते चलो।
धुनि ध्यान लय परकास सन्मुख रूप छबि छाते चलो।
अमृत पिओ अनहद सुनो सुर मुनि से बतलाते चलो।
नागिनि जगा चक्कर चला कमलन को उलटाते चलो।
भक्त औ भगवान के जस को सदा गाते चलो।
अंधे कहैं निज धाम को चढ़ि यान हर्षाते चलो।६।