१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५०)
पद:-
सतगुरु करो पावो पता धुनि नाम पर माते रहौ।
ध्यान लय परकास सन्मुख रूप को छाते रहौ।
सुर मुनि मिलैं अनहद सुनौ अमृत को नित पाते रहौ।
नागिनि जगा चक्कर नचा कमलन को उलटाते रहौ।
दीनता औ शान्ति हो उसको भि बतलाते रहौ।
अंधे कहैं तन छोड़ि कै चढ़ि यान पर जाते रहौ।६।