१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(५९)
पद:-
मन को मारि चलौ साकेत।
सतगुरु से सुमिरन बिधि जानो जियति जाहु अब चेत।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि कर्म शुभाशुभ रेत।
अमृत पियौ सुनो घट अनहद सुर मुनि आशिष देत।४।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हंसि हंसि गोदी लेत।
रहौ मगन तब सदा एक रस बिगड़ सकै नहिं नेत।
अन्धे कहैं भजन में सच्चा वा से करिये हेत।
जैसा करौ वैस फल पाओ तन तुम्हार है खेत।८।
दोहा:-
राम नाम सुमिरन करै, राम नाम का ध्यान।
अन्धे कह भक्तों वही, देत भक्ति औ ज्ञान॥
चौबोला:-
देत भक्ति औ ज्ञान महा परकाश दिखावै।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख छावै।
अनहद घट में सुनौ अमी रस पान करावै।
षट चक्कर जगि चलैं कमल सातों लहरावैं।४।
स्वरन से उड़ै तरंग मस्त मन बोल न आवै।
जागि नागिनी चलै संग सब लोक लखावै।
सुर मुनि आवैं मिलन बिहँसि के हृदय लगावैं।
अन्धे कहैं सुनाय छोड़ि तन अवध सिधावै।८।