१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६०)
पद:-
हर शै से धुनि राम नाम की ररंकार भन्नाय रही।
अनहद सुनौ अमी रस पीकर सुर मुनि संग बतलाय रही।
नागिनि जगी चक्र षट नाचैं सातों कमल फुलाय रही।
निकलै महक स्वरन से अद्भुत छिन छिन में हर्षाय रही।४।
कर्म शुभाशुभ तेज समाधि में जाय के छार कराय रही।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि की छबि सन्मुख छाय रही।
मरी बासना नाम रूप की सूरत शब्द समाय रही।
अन्धे कहैं छोड़ि तन भक्तौं रूह अवधपुर जाय रही।८।