१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७३)
पद:-
हरि सुमिरन चुक्का जम दें मुक्का बड़े कुचक्का लिहे रुक्का।
पकड़ैं जिमि हुक्का मुख में थुक्का कहैं उचक्का हो तुक्का।
सतगुरु करि झुक्का मिला सलुक्का बजै धुधुक्का अति सुख का।
आलस गहि फुक्का भयो हलुक्का खाय मुनुक्का हरि रुक्का।
कहैं अन्ध तुरुक्का तन मन बुक्का नेक न पुक्का गा घुक्का।
पहिरे नहि टुक्का मस्त बनुक्का हंसि हंसि कुक्का सुख दुख का।६।
दोहा:-
मन बूढ़ा नहि होत है तन बूढ़ा ह्वै जाय।
अन्धे कह मन बूढ़ हो सो निज घर को जाय॥
तन तो मर मर जात है मन नहि मरता मान।
अन्धे कह मन जाय मरि महा सुखी सो जान।२।