१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७४)
पद:-
जानौ राम नाम की बात।
सतगुरु से सुमिरन बिधि लेकर धरो प्रपंच पै लात।
जाय एकान्त में ध्यान जमावौ तब लागैगी घात।
मन औ नाम की होय एकता क्या रँहटा भन्नात।
तेज समाधि कर्म दोऊ मेटै जो शुभ अशुभ कहात।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में ठहरात।६।
हर दम रहैं न अन्तर होवैं जो सब के पितु मात।
सुर मुनि आवैं हिये लगावैं कहैं भया मम भ्रात।
अनहद सुनो पिओ नित अमृत घट सागर हहरात।
नागिनि जगै चक्र सब बेधै सातौं कमल फुलात।
निर्भय मस्त गस्त सब छूटी एक रस दिन औ रात।
अन्धे कहैं अन्त तन तजि कै चढ़ि बिमान घर जात।१२।
शेर:-
रग रोम जोड़ हाड़न हर शै से नाम होता।
अन्धे कहैं सो जाने घट में लगावै गोता॥