१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७८)
पद:-
बचि करि चलिये, बिलरिया दौरी।
सब सामान फ़ौज संग में लिहे जंग करत बरजोरी।
इस तन भीतर दस खिड़की हैं पहुँचत नौ की ओरी।
आगे जाय सकै नहिं भक्तौं नेक न मन को औरी।४।
या की पकड़ि से जो बचि जावै सो गहि कर फिरि कौरी।
होय अपंग भागि नहि पावै बैठि रहै एक ठौरी।
या की काट छाँट है ऐसी मन मति कर दे बौरी।
अन्धे कहैं बिना सतगुरु के धरै पाप सिर मौरी।८।
दोहा:-
जैसे चंवरी साधि कै जोर से देव घुमाय।
कछु माछी महि गिर मरैं कछु बचि कै उड़ि जाँय॥
जिनको माया लेय गहि नर्क को देहि पठाय।
सतगुरु किरपा जे बचें अन्धे कह हर्षाय॥