१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७७)
पद:-
मानुष का तन पाय के जग में करत अकाज।
अन्धे कह चेतत नहीं संघ में सबै समाज।
अनेक जन्म के सुकृत ते मानुष तन हरि दीन।
अन्धे कह सुमिरन करो ह्वै जावौ लव लीन।४।
अन्धे कह सतगुरु करो लेव नाम धुनि चीन्ह।
नाहीं तो पछितावगे जम लेहैं जब छीन।
बाँधि नर्क में डारि दें भोगो कर्म अनुसार।
अन्धे कह सुमिरन करो जियति होय निस्तार।८।
दोहा:-
हरि सुमिरन जे जानिगे ते सच्चे हुशियार।
अन्धे कह फंदे कटैं जियति भये भव पार॥