१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८२)
पद:-
दयामय नाम सब कहते दया सरकार हो जाये।
अधम जीवन को भी स्वामी ज़रा दीदार हो जाये।
करैं फिर पाप नहिं नेकौं जियति निस्तार हो जाये।
ध्यान परकाश लय धुनि नाम की एक तार हो जाये।
पियै अमृत बजै अनहद मधुर गुमकार हो जाये।५।
जगै नागिन चलैं चक्कर कमल फुलवार हो जाये।
उड़ैं गमकैं बहुत परकार की मतवार हो जाये।
मिलैं सुर मुनि करैं जै जै संग खेलवार हो जाये।
छटा पितु मातु की सन्मुख लखैं निशिबार हो जाये।
कहैं अन्धे तजै तन जब अवध घर बार हो जाये।१०।
दोहा:-
राम नाम के स्वाद बिनु जीव भयो बरबाद।
अन्धे कह उनसे भली मल औ मूत्र की खाद॥