१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८३)
पद:-
अन्धे कहैं इस तन का कोई करार नाहीं।
सतगुरु करो भजो हरि इस जग में सार नाहीं।
धुनि नाम तेज लय हो जहँ पर विचार नाहीं।
सुर मुनि मिलैं लिपट कर बोलैं गँवार नाहीं।४।
सन्मुख में राम सीता सुख का शुमार नाहीं।
तन त्यागि लो अचलपुर जँह से निसार नाहीं।
नर तन को पाय जिसने लूटा बहार नाहीं।
तन तजि गया है यमपुर पाया शिकार नाहीं।८।
शेर:-
सतगुरु करै भजै हरि जग जाल से वह निकलै।
अन्धे कहैं तजै तन वह फिर न गर्भ फिसलै।
सतगुरु करि सुमिरन करो होवै ठीक औ ठाक।
अन्धे कह हरि भजन बिन नर तन फीक औ फाक।४।