१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८५)
पद:-
संयोग वियोग लगा रहेता, यह सृष्टि क खेल बना रहेता।
दुख सुःख में भक्त जो सम रहेता, अन्धे कह सो शिव पद लहेता॥
दोहा:-
भीतर बाहर सम रहै, यही भाव का अर्थ।
अन्धे कह मन नहिं मिलै जानौ यही अनर्थ॥
पद:-
संयोग वियोग लगा रहेता, यह सृष्टि क खेल बना रहेता।
दुख सुःख में भक्त जो सम रहेता, अन्धे कह सो शिव पद लहेता॥
दोहा:-
भीतर बाहर सम रहै, यही भाव का अर्थ।
अन्धे कह मन नहिं मिलै जानौ यही अनर्थ॥