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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(८६)


पद:-

घाटि करते हैं जे प्राणी, बड़े पापी हैं अभिमानी।

पड़ैं जब नर्क की खानी, करैं तब कैसे मन मानी।

कढ़ैं मुख हाय की बानी, कहैं यम दूत अज्ञानी।

मिलें सतगुरु न सुख दानीं, कहैं अन्धे है हैरानी।४।


दोहा:-

घटिहन के घाटा पड़ै, नर्क में बोरे जाँय।

अन्धे कह हर दम दुखी, पकरि निचोरे जाँय॥